Friday, February 4, 2011

अरेवा की प्रयोगशाला

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज च्वहाण जैतापुर परमाणु संयंत्र परियोजना पर जनवरी के पहले सप्ताह में ही बोल चुके हैं- ‘मैं राज्य सरकार की तरफ से कोई भी ऐसी तकनीक यहां आने नहीं दूंगा जो महाराष्ट्र की जनता के लिए असुरक्षित हो। हमारे राज्य मे ंपहले से छह रिएक्टर चालू हालत में हैं। यह कहना मूर्खतापूर्ण तर्क है कि यह असुरक्षित है। महाराष्ट्र में परमाणु रिएक्टर के खिलाफ एक सस्ती राजनीति की जा रही है।’ पृथ्वीराज चह्वाण उन दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री थे जब केन्द्र सरकार ने सारी ताकत झोंककर परमाणु उर्जा विधेयक को मंजूर करवाया था. पृथ्वीराज चह्वाण जानते हैं कि वे कितनी "मंहगी" राजनीति करने के बाद परमाणु उर्जा विधेयक पारित करवाने में सफल रहे हैं, इसलिए उनके राज्य में परमाणु बिजलीघरों के विरोध जैसी 'सस्ती' राजनीति को वे भला क्यों बर्दाश्त करेंगे?9900 मेगावाट के जैतापुर परमाणु ऊर्जा प्रकल्प को लेकर कोंकण क्षेत्र में सस्ती ही सही, लेकिन राजनीति तेज हो गई है। परमाणु ऊर्जा संयंत्र के पक्षकार जहां इसे विकास से जोड़कर देख रहें हैं, वहीं इस परियोजना के खिलाफ खड़े लोगों का स्पष्ट मानना है कि यह परियोजना कोंकण के विनाश की कहानी का पहला अध्याय होगी। 9900 मेगावाट के परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के काम को छह इकाइयों में फ्रांसिसी कंपनी अरेवा के हाथों पूरा होना है। योजना के अनुसार पहले चरण में प्रस्तावित छह ईकाइयों में 1650-1650 मेगावाट वाले दो इकाइयों का काम पूरा होगा। यह दोनों ईकाइयां रत्नागिरी जिले के मड़वन में होंगी। योजना के अनुसार इस परियोजना के पहले चरण को 2013-14 तक पूरा होना है और बचे चार ईकाइयों का काम भी 2018 तक पूरा कर लिया जाना है। वर्तमान में हमारे कुल बिजली उत्पादन मे ंपरमाणु ऊर्जा की भागीदारी 2.90 प्रतिशत की है। देश में इसे 2020 तक बढ़ाकर छह प्रतिशत तक ले जाने की योजना है। और 2030 तक इसे तेरह प्रतिशत की भागीदारी में बदल दिया जाएगा। इसके लिए मड़वन (जैतापुर) की तरह कई परियोजनाओं की देश को जरुरत होगी।बहरहाल बात माड़वन (जैतापुर) की करते हैं। जिसमें पांच गांव माड़वन, मीठागवाने, करेल, वारिलवाडा और नीवेली की 938 हेक्टेयर जमीन जानी है। लेकिन चर्चा में माड़वन (जैतापुर) गांव का नाम ही बार-बार आ रहा है। इसकी पहली वजह यह है कि छह ईकाइयों में पूरे हो रहे इस परियोजना की पहली दो ईकाइयों का काम माड़वन में ही पूरा होना है। दूसरी वजह जनहित सेवा समिति के प्रवीण परशुराम गवाणकर बताते हैं, ‘परियोजना में जाने वाले कुल 938 हेक्टेयर जमीन में 669 हेक्टेयर जमीन माड़वन की है।"

परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के लिए चुनी गई यह जमीन पर्यावरण के लिहाल से अति संवेदनशील है। समुद्र का किनारा, 150 किस्म के पक्षियों का घर, 300 किस्म की वनस्पतियां। खास बात यह है कि इनमें कई वनस्पतियों और पक्षियों की किस्म दुर्लभ है। समुन्द्र के इस मनोरम तटिय क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक परमाणु ऊर्जा संबंधित प्रकल्प प्रस्तावित हैं। जबकि रत्नागिरी को राज्य सरकार ने ओद्यानिकी (हॉर्टिकल्चर) जिला घोषित किया है और इसका पड़ोसी जिला सिंधदुर्ग गोवा से भी लगा हुआ होने के कारण पर्यटकों की खास पसंद रहा है। बड़ी संख्या में गोवा देखने के लिए आने वाले पर्यटक सिधदुर्ग का रुख करते हैं। पर्यावरणविद इस बात से अचंभित है कि जिस रत्नागिरी को दुनिया भर मे जैव विविधता के हॉट स्पॉट के तौर पर देखा जाता है, उस जिले के लिए परमाणु ऊर्जा संबंधित परियोजना के करार पर उस साल हस्ताक्षर होता है, जब पूरी दुनिया ‘अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष’ का उत्सव मना रही है। 2010 को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रुप में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने बर्लिन में की।साखरी नाटे मछुआरों की बस्ती है। वहां मिले मच्छीमार कृति समिति के उपाध्यक्ष, अमजद बोरकर। वे और उनके साथी समुन्द्र को लेकर अपने रागात्मक रिश्तों की बात करते-करते भावुक हो गए। बकौल बोरकर- ‘समुद्र के साथ हमारा रिश्ता पीढ़ियों का है। हमारे पूर्वजों के समय से यह समुन्द्र हमें रोटी दे रहा है। सरकार परमाणु ऊर्जा प्रकल्प को कांेकण और महाराष्ट्र का विकास कहकर प्रचारित कर रही है। लेकिन यह विकास का नहीं कांेकण की बर्बादी का समझौता है।’ बोरकर के अनुसार महाराष्ट्र की सरकार प्रकल्प के नाम पर गंदी राजनीति कर रही है। वे बताते हैं कि किस तरह कोई डॉ. जयेन्द्र पुरुलेकर एक मराठी चैनल पर आकर और खुद को जैतापुरवाला बताकर परियोजना के पक्ष में बोलता रहा, जबकि उसका जैतापुर से कोई ताल्लुक नहीं है। बोरकर कहते हैं, ‘हम साखरी नाटे में रहने वाले लोगों ने मिलकर पुरलेकर के झूठ के खिलाफ उसका पुतला जलाया।’टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल साईंस (टिस) की एक रिपोट के अनुसार परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के लिए सरकार ने जो स्थान तय किया है। वह बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। 'टिस' की यह रिपोर्ट महेश कांबले ने इस इलाके के 120 गांवों में जाकर लोगों से मिलकर तैयार की है। कांबले के अनुसार इस परियोजना का स्थानीय और पर्यावरणीय परिवेश पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट यह भी कहती है कि सरकार तथ्य को तोड़ मरोड़ रही है। और मड़वन के उपजाऊ जमीन को बंजर बनाकर कर पेश कर रही है। जैतापुर के जिस 626.52 हेक्टेयर जमीन को अन उपजाऊ बताकर दिखाया जा रहा है। वहां के किसान उस जमीन पर धान, फल, सब्जी लगा रहे हैं। वर्ष 2007 में बाढ़ में सरकार ने राजापुर के किसानों को आम की फसल खराब होने पर एक करोड़ सैंतिस लाख सात हजार रुपए का मुआवजा दिया था।
अर्थक्वेक हजार्ड जोनिंग ऑफ इंडिया के अनुसार जैतापुर जोन तीन में आता है। जो भूकम्प के लिहाज से रिस्क जोन माना जाएगा। ऐसे इलाके में परमाणु से जुड़े किसी प्रकल्प को शुरु करना कम खतरे की बात नहीं है। स्थानीय लोगों के लिए रेडिएशन का मामला भी एक बड़ा मुद्दा है। परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के आस पास जो लोग होंगे, उनके स्वास्थ पर इसका दुष्प्रभाव एक बड़ी चिन्ता बना हुआ है। गांव वाले पूछते हैं, यदि यह प्रकल्प इतना सुरक्षित है तो यहां काम करने वाले अधिकारियों के लिए आवास की व्यवस्था प्रकल्प से पांच-सात किलोमीटर दूर क्यों प्रस्तावित है? उनके रहने के लिए आवास परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के परिसर में क्यों नहीं किया जा रहा?माड़वन (जैतापुर) में रहने वाले जानना चाहते हैं, यदि फ्रांसिसि कंपनी अरेवा उनके गांव आ रही तो यहां वह कोई समाज सेवा करने तो नहीं आ रही है। वह एक निजी कंपनी है, जो यहां कमाई के इरादे से आएगी और कांेकणा की जमीन पर पहली बार वह अपने ईपीआर तकनीक की जांच भी कर पाएगी। जिसे पहले कहीं जांचा-परखा नहीं गया है। क्या अरेवा भारत को परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के नाम पर अपनी प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है?

1 comment:

ajayekal said...

Good anshu,
I am pleased to see your post and contents. The behavior of these MNC may be good at their home country but is is certainly not good when they come to India Voda fone is the latest example of it who have very
conveniently avoided the tax burden of 12000 Cr.
So it is necessary that we should deal with it very cautiously .
Ajay Singh "Ekal"
http://ajayekal.blogspot.com